उम्र भर ख्याली भूतों से अगर, मैं ना डरता…

सैनिक रवि – डर पर विजय – स्वगत

हॉकी खेलने का शौक मार
फ़ौज में भर्ती ले ली
मोहल्ला मुझे निकम्मा-निठल्ला न कहे
मुझे मेरे आत्म-सम्मान का डर था

इस सब में कहाँ किसी को जान का डर था?
पर आज, यहां बॉर्डर पर बैठ कर
जान का खतरा जब सर पर मंडरा रहा है
वो डर कितना बोगस था, ये समझ में आ रहा है

और शायद ये समझ इंसान को एक बार और आता है
जब बुढ़ापे में बिस्तर पर लेटे-लेटे
उसका पूरा जीवन उसकी आँखों के सामने से जाता है
और वो कहता है खुद से
उम्र भर ख्याली भूतों से अगर, मैं ना डरता
खुदा मैं क्या ज़ोर से जीत, खुदा – मैं क्या चैन से मरता


Written By: अमरीश वर्मा
Played By: परमवीर चीमा
Web Series: सपने बनाम एवरीवन – द ड्रीम मस्ट नॉट डाए (Dec 2023- Jan 2024)

आये कुछ अब्र – numb yet painful

* अलाप *

आये कुछ अब्र, कुछ शराब आये
आये कुछ अब्र, कुछ शराब आये
उस के बाद आये जो, अज़ाब आये (x2)

* voice tune *
let some clouds come, and some wine may served
let some clouds come, and some wine may served
i wouldn’t care if every calamity, rained down upon me! (x2)

कर रहा था, ग़म-ए-जहां, का हिसाब
कर रहा था ग़म-ए-जहां, का हिसाब
आज तुम याद, बे-हिसाब आये

i was re-calling all, that has tormented in this world (x2)
today I missed you, immeasurably

आये कुछ अब्र, कुछ शराब आये
उस के बाद आये जो अज़ाब आये
आये कुछ अब्र, कुछ शराब आये …

let some clouds come, and some wine may served
let some clouds come, and some wine may served
after this, let come whatever punishment may come…

इस तरह अपनी, खामोशी गूँजी (x2)
गोया हर सिम्त से, जवाब आये

in such a way, did my silence resonated (x2)
as seeking answers from every direction.

आये कुछ अब्र, कुछ शराब आये
उस के बाद आये जो, अज़ाब आये
आये कुछ अब्…

let some clouds come, and some wine may served
after this, let come whatever punishment may come
let some clouds come…

बाम-ए-मीना से, मह-ताब उतरे
मीना…
बाम-ए-मीना से, मह-ताब उतरे
दस्त-ए-साक़ी में, आफताब आये

from the roof-like edge of the wineglass, may the moonshine descend
wineglass…
from the roof-like edge of the wineglass, may the moonshine descend
held in the hand of the cupbearer, may the sun come

आये कुछ अब्र, कुछ शराब आये (x2)
उस के बाद आये जो, अज़ाब आये
आये कुछ अब्र…

let some clouds come, and some wine may served (x2)
after this, let come whatever punishment may come
let some clouds come…


Faiz Ahmad Faiz (13 February 1911 – 20 November 1984)

Aaye Kuch Abr (Urdu: آئے کُچھ ابر transl. Let some cloudy weather come) is a poem written by famous Urdu poet Faiz Ahmad Faiz. It was written during Faiz’s life of isolation and separation, while he was lodged in Hyderabad Central Jail during the Rawalpindi conspiracy case. He was away from his wife and two daughters. After being separated from his family, Faiz spent months without seeing them. A few steps ahead of time, Faiz found himself misunderstood in the society in which he lived. Aaye Kuch Abr took this step in Faiz’s life but he stands with hope.

Composed by: Mehdi Hassan, 2011 (later in 2019 re-composed by Atif Aslam)

the longing 🥺❤️‍🩹

सोहना ते मैं तू दूर गया ए
होके सजन मजबूर गया ए
अंखियां दे वास्ते खुशियां होवन
होके हिजर विच चूर गया ए

dear sweetheart driven away from me,
my dear departed, compelled by duties.
delight to my eyes,
breaking-us down in tears, had departed

सोहणा पेया परदेस कटेन्दा
सजणा नू दूरों-दूरों वैंदा
साड्डी ते सारी सुण्दा एह पर
अपनी पीड़ नहीं वैंदा

the dear one, has been surviving hopelessly in a strange land
watches his sweetheart from afar.
he sense all I wish,
but hardly expresses his sentiments.

सोहणा ते सूट भजैंदा एह पर
अपनी पीड़ ना वैंदा ए (x2)

he dress well,
yet he ignores his inner troubles.

अंखा दे वास्ते भेजे कज्जल
ना मोई दूरि वैंहदा एह

he sends kohl for my eyes from abroad,
yet he is blind to the gap between us.

परदेस कटेन्दा
परदेस

सोहणा भजैंदा सानू कमायां
सोहणा मनावे ईदाँ परायां
आ जा सोह्णेया गलियां संझियां
सानू कबूल वे तेरी लड़ाइयां

my sweetheart sends all his earnings,
my sweetheart celebrates foreign festivals.
come home, dear, the streets have gone lonely
i’d not mind at all, even if we end-up arguing

रोंदे बद्दल मीह वरसेंदे
दाठा तेनु याद करैंदे
इस महिने तू आवंजणा
रोज़ अपने दिल नू दसेंदे

clouds cry, downpouring,
missing you so much.
‘you’ll return this month’,
convincing their hearts each day.

सोह्णेया वतना नू मुड़के आवं
दो दिहारे मुख तां दिखावं (x2)
रोज़ तकेंदे राह तेरी…..

o darling, return home
at least give me a glimpse of you.
each day, looking at the road, I expect your arrival.

परदेस कटेन्दा
परदेस, परदेस

हो टेढ़ी दूरी नू, हां ना`ल लावां
आ सजन नेहदे, आ तेरे ते फुल पावां
may this distance collapse, bringing us closer
come to me darling, come I’ll welcome you with flower shower

परदेस कटेन्दा, परदेस, परदेस कटेन्दा…


Pardes Katenda by Adnan Dhool
Jun 16, 2023

of camaraderie 👨‍👦

मैं अगर
सितारों से चुराके लाऊँ, रौशनी
हवाओं से चुराके लाऊँ, रागिनी
न पूरी हो सकेगी उनसे मगर, तेरी कमी

मैं अगर
नज़ारों से चुराके लाऊँ, रंगतें
मज़ारों से चुराके लाऊँ, बरक़तें
न पूरी हो सकेगी उनसे मगर, तेरी कमी

ये दुनियां परायी है बस एक अपना है तू
जो सच हो मेरा वो सवेरे का सपना है तू
देखूंगा तेरा रास्ता
हो कुछ तुझे बस ख़ुदा ना खास्ता
हो तेरे बिना उम्र के सफ़र में बड़ा ही तन्हा हूँ मैं
रफ़्तार जो वक़्त की पकड़ ना सके वो लम्हा हूँ मैं
फागुन के महीने, तेरे बिना है फिंके
जो तू नहीं तो सारे, सावन मेरे सूखे
मैं अगर
किताबों से चुरा के लाऊं, क़ायदे
हिसाबों से चुरा के लाऊं, फ़ायदे
न पूरी हो सकेगी उनसे मगर, तेरी कमी
मैं अगर
सितारों से चुराके लाऊँ, रौशनी
हवाओं से चुराके लाऊँ, रागिनी
न पूरी हो सकेगी उनसे मगर, तेरी कमी
ये दुनियां परायी है बस एक अपना है तू
जो सच हो मेरा वो सवेरे का सपना है तू
देखूंगा तेरा रास्ता
हो कुछ तुझे बस ख़ुदा ना खास्ता (खास्ता)
ख़ुदा ना खास्ता (खास्ता)
– प्रीतम चक्रबोर्ती / अमिताभ भट्टाचार्य (Jun 2017)

realization of the dream 💡

हाँ यही रस्ता है तेरा
तूने अब जाना है
हाँ यही सपना है तेरा
तूने पहचाना है x2

तुझे अब ये दिखाना है

रोके तुझको आंधियां
या ज़मीं और आसमाँ
पाएगा जो लक्ष्य है तेरा
लक्ष्य तो…
हर हाल में पाना है

मुश्किल कोई आ जाये तो
परवत कोई टकराए तो
ताक़त कोई दिखलाये तो
तूफ़ान कोई मंडलाये तो
मुश्किल कोई आ जाये तो
परवत कोई टकराये तो

बरसे चाहे अम्बर से आग
लिपटे चाहे पैरों से नाग x2
पायेगा जो लक्ष्य है तेरा
लक्ष्य तो हर हाल में पाना है

हिम्मत से जो कोई चले
धरती हिले क़दमों तले
क्या दूरियाँ? क्या फ़ासले?
मंज़िल लगे आके गले
हिम्मत से जो कोई चले
धरती हिले क़दमों तले

तू चल यूं ही अब सुबह-ओ-शाम,
रुकना, झुकना नहीं तेरा काम x2
पायेगा जो लक्ष्य है तेरा
लक्ष्य तो हर हाल में पाना है

हाँ यही रस्ता है तेरा
तूने अब जाना है
हाँ यही सपना है तेरा
तूने पहचाना है
तुझे अब ये दिखाना है

– जावेद अख्तर (Jun 2004)

जीत | #DWMU

बहकी सभी जुबां हैं
हम हैं हज़ारों में
अब की कमी ज़रा है
हर चीज़ खास है

अब है जो है वो समां है
तुम रह सके, तो रबा है
ऐसी जीत
अब चाहे ज़िंदगी
ऐसी जीत
अब चाहे ज़िन्दगी, हाय!

सहनी हमें सजा है
हम हैं बाज़ारों के
सबकी नज़र यहां है
हर चीज़ राज़ है

अब है जो है वो समां है
तुम रह सके, तो रबा है
ऐसी जीत
अब चाहे ज़िंदगी
ऐसी जीत
अब चाहे ज़िन्दगी, हाय!

ऐसी ज़िन्दगी हम छिप-छिपायें
हम ना आएं आएं आएं….हम ना आएं
ऐसी जीत छिप-छिपायें
ऐसे जीत, हम न पाएं

ऐसी जीत
न छिप-छिपायें


Artist: Ritviz
Lyrics: Sanjeev Sinha
Album: Ved
Year: 2018

Tune it Here: https://www.youtube.com/watch?v=UxdoDj5ZNiA

#BacardiHousePartySessions #DoWhatMovesYou

मुसाफिर?

मैं मुसाफिर बनूं, रास्ता हो तेरा
मंज़िलों से मेरी, वास्ता हो तेरा

रोशनी से तेरी, हो सवेरा मेरा
तू जहां भी रहे, हो बसेरा मेरा

यहां मेरे तेरे सिवा
है न दूजा कोई रे
अकेला मुझे छोड़ के
न जाना यूं निरमोही रे

हो कहानी मेरी, तर्जुमां हो तेरा
हो दुआएं तेरी, सर झुका हो मेरा

राज़ में भी तेरे, सच छुपा हो मेरा
मै कमाई जोडूं, क़र्ज़ अदा हो तेरा

यहां मेरे तेरे सिवा
है न दूजा कोई रे
अकेला मुझे छोड़ के
न जाना यूं निरमोही रे


अमिताभ भट्टाचार्य
Jul 10, 2017